Be freshly disposed ever:
"बस आरम्भ ही आरम्भ है, इश्क़ की जिन्दगी में
कि भूल भी सकी तेरी निगाहें पहलापन कहीं"
(-simplified form of sher by फ़िराक़ गोरखपुरी)
The original sher is as follows:
"बस इब्तेदा ही इब्तेदा है ज़िंदगी-ए-इश्क़ में
कि भूल भी सकी तेरी निगाहें-अव्वलीं कहीं"
(-फ़िराक़ गोरखपुरी)
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