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Wednesday 2 April 2014

तमन्नाओं में उलझाया गया हूँ .. ( Tamannaon me uljhaya gaya hoon )

A truly dedicated person stops only at his destination and

 never before:
 

"हम किसी दर पे न ठिठके, न कहीं दस्तक दी 

 
सैकड़ों दर थे मेरी जाँ, तेरे दर के पहले।"

 

(-इब्ने 'इंशा)


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Never douse your burning desires of good actions otherwise

 you’ll feel suffocated for the whole life : 
 

"तमाम उम्र मेरा दम इसी धुंए में घुटा 

 
वो इक चराग था, मैंने उसे बुझाया है।"

 
(-बशीर 'बद्र')




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In an anarchic democracy, the authority never listens to a 

destitute:
 

"लिख के भेजें उनको हम क्या ख़ाक खत 

 
बिन पढ़े कर डालते हैं चाक खत।"

 

(-बहादुर शाह 'ज़फर')


शब्दार्थ: (1) कर डालते हैं चाक = फाड़ डालते हैं ============================================================

02.04.2014


"वक़्त दरिया है कि रोके न रुकेगा हरगिज 

हम शिनवार हैं कि साहिल, न भँवर देखेंगे।" 



(-साहिर होशियारपुरी)

शब्दार्थ : (1) शिनावर = तैराक, (2) साहिल = किनारा


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02.04.2014

If you keep some good desires you are bound to get 
heartburn:

"यह कहकर दिया उसने दर्दे-मुहब्बत 
जहाँ हम रहेंगे यह सामान होगा।

चलो देख आयें 'जिगर' का तमाशा 
सुना है वो काफिर मुसलमान होगा।"

(-जिगर मुरादाबादी)
शब्दार्थ : (1) काफिर मुसलमान होगा = मूर्ति (प्रेमिका) की पूजा करनेवाला मूर्तिपूजा छोड़ देगा
 05.04.2014

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If your pain has reached such a height that you even stop 

crying, people think that you have got relief :
 

"इतने चुप क्यों हो रफीक़ाने-सफ़र कुछ तो कहो 

 
दर्द से चूर हुए हो कि करार आया है।"

 

(-अहमद फ़राज़)

 
शब्दार्थ: (1) रफीक़ाने-सफ़र = सफ़र के दोस्त

 02.04.2014

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 "गुफ़तगू अच्छी लगी ज़ौक़े-नज़र अच्छा लगा 
मुद्दत्तों के बाद कोई हमसफ़र अच्छा लगा।

 

हर तरह की बे-सरो-सामानियों के बावजूद 

 
आज वो आया तो मुझको अपना घर अच्छा लगा।"

(-अहमद फ़राज़)

 
शब्ददार्थ : (1) गुफ़तगू = \बातचीत, (2) ज़ौक़े-नज़र = नज़रों की रुचि,


 (3) बे-सरो-सामानियों = बिना सरो-सामान के

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After the season of Elections, the corrupt politicians will get back to their regular corrupt practices :

"दैरो-हरम में घूम के ऐ पीरे-मैक़दा
लौट आउंगा मैं मौसमे-अब्रो-बहार में।"

(-'अदम')
शब्दार्थ: (1) दैरो-हरम = मंदिर और मस्ज़िद, (2) पीरे-मैक़दा = शराबखाने का सन्त
(3) मौसमे-अब्रो-बहार = बादल और बरसात के मौसम में

11.03.2014



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In this self-centred world, everybody has to safeguard his interests solitarily :

"इस नगरी के बाग़ और वन की यारों लीला न्यारी है 

पंछी अपने सर पे उठा कर अपने बसेरे फिरते हैं।"

(-'आबिद'

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Materialistic desires are the biggest temptress which make everyone sing to their tune:


"तमन्नाओं में उलझाया गया हूँ

खिलौने दे के बहलाया गया हूँ। 



दिले-मुज़तर से पूछ ऐ रौनके-बज़्म

मैं यहाँ आया नहीं, लाया गया हूँ।"



(-शाद अज़ीमाबादी)

शब्दार्थ: (1) दिले-मुज़तर = बेचैन दिलवाले, (2) रौनके-बज़्म = सभा की रौनक
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Remember those who embraced gallows today for our freedom :

"सूलियों के साये पे 

इन्किलाब पलता है,
तीरगी के काँटों पर 
आफताब चलता है।"

(-
अली सरदार ज़ाफ़री)
 
शब्दार्थ : (1) तीरगी = अँधेरे, (2) आफ़ताब = सूरज

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 The world favours him only who has willingness and 

possesses power to bring about desirable changes in the 

society :
 

"मैं इश्क़े-बेनियाज़ हूँ, तुम हुस्ने-बेपनाह 

 
मेरा जवाब है न तुम्हारा जवाब है। 

 

मैखाना है उसी का, यह दुनिया उसी की है 

 
जिस तिश्ना-लब के हाथ में जामे-शराब है।"

 

(-जिगर मुरादाबादी)

 
शब्दार्थ: (1) इश्क़े-बेनियाज़ = निःस्पृह (बेपरवाह) इश्क़, (2) 


तिश्ना-लब = प्यासे होंठ

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In this materialistic world, self-confidence is like a falling wall

which may break down into tears at any moment: 
 

"दूध पीते हुए बच्चे की तरह है दिल भी 

 
दिन में सो जाता है, रातों को जगाता है मुझे। 

 

रोज कहता है गिरती हुई दीवार हूँ मैं 

 
एक बादल है, जो रह-रह के डराता है मुझे।"

 
(-बशीर 'बद्र')


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Sooner or later, you have to adapt yourself with some 

amount of ugliness i.e. immorality if you want to survive. (If 

ugliness is inevitable, let it be benign.)

"हमने भी पहली बार चखी तो बुरी लगी 

 
कड़वी तुम्हें लगेगी मगर एक जाम और। 

 

हैराँ थे अपने अक्स पे घर के तमाम लोग 

 
शीशा चटख गया तो हुआ एक काम और।"

(-दुष्यंत कुमार)


शब्दार्थ: (1) अक्स = अपनी तस्वीर



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