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Tuesday 15 October 2013

फिर छिड़ी रात, बात फूलों की.. ( Fir chidi raat baat phoolon ki )




       Fir chidi raat baat phoolon ki.. 

फिर छिड़ी रात, बात फूलों की
रात है या बारात फूलों की।


फूल के हार, फूल के गजरे
शाम फूलों की, रात फूलों की।



आपका साथ - साथ फूलों का
आपकी बात, बात फूलों की।


फूल खिलते रहेंगे दुनिया में
रोज़ निकलेगी बात फूलों की।  



नज़रें मिलती हैं, जाम मिलते हैं                

मिल रही है हयात फूलों की।   
   


ये महकती हुई ग़ज़ल 'मख़दूम'
जैसे सहरा में रात फूलों की।

________
( 'मखदूम' मोईनुद्दीन)
शब्दार्थ : (1) हयात = जिंदगी, (2) सहरा = जंगल 
on 15.10.2013 

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