14.09.2014
Your life is short, make it eventful :
Your life is short, make it eventful :
"शमा हूँ आखरी रात की, सुन कहानी मेरी
फिर सुबह होने तक का किस्सा ही तो सबकुछ है"
(-simplified version of sher by मीर तक़ी 'मीर')
The original sher is as follows:
"शम्मे-अख़ीरे-शब हूँ सुन सरगुज़िस्त मेरी
फिर सुब्ह होने तक तो क़िस्सा ही मुख़्तसर है"
(-मीर तक़ी 'मीर')
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20.08.2014
Your conscience follows you like your foot-prints :
20.08.2014
Your conscience follows you like your foot-prints :
"रखियो कदम सम्भाल के तू जानता नहीं
पद-चिन्हों की भाँति ये सरे-राह कौन है"
(-simplified form of sher by 'मीर)
The original sher is as follows:
"रखियो कदम सम्भाल के तू जानता नहीं
मनिन्दे- नक़्शे-पा ये सरे-राह कौन है"
(-'मीर)
17.07.2014
Good people return virtue for vice :
"काँटे को जिसने मोती की लड़ी कर दिखलाया
इस बियावान में वो फफोला-पाँव मैं ही हूँ"
(-simplified 'form of sher by मीर)
The original 'sher' is as follows :
"खार को जिनने लड़ी मोती की कर दिखलाया
इस बयाबान में वो आबला पा मैं ही हूँ"
(-मीर)
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17.07.2014
"जो शाख लचकती है कड़कती-सी कमाँ है
"जो शाख लचकती है कड़कती-सी कमाँ है
जो चीज चमक जाती है इक नोके-सिनाँ है
एक-एक किरन तारों की नागन की ज़बाँ है
हर लहज़ा यही खौफ कि अबके न बचेंगे
हम ज़िंदा थे, हम ज़िंदा हैं, हम ज़िंदा रहेंगे।"
(-'फ़िराक़' गोरखपुरी)
शब्दार्थ: (१) नोके-सिनाँ = भाले की नोक
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17.07.2014
Will is supreme :
"वो काँटा-सा हैं गुलाब की शाखा का मानो
मैं ज़ख्म-ज़ख्म हूँ, फिर भी गले लगाऊँ उसे।
(-simplified version of sher by अहमद फ़राज़)
The original sher is as follows :
"वो खार-खार हैं शाखे गुलाब की मानिन्द
मैं ज़ख्म-ज़ख्म हूँ, फिर भी गले लगाऊँ उसे।
(-अहमद फ़राज़)
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17.07.2014
Love is guaranteed by your resourcefulness and not by solicitation:
"अहदे-वफ़ा है हुस्ने-यार
Will is supreme :
"वो काँटा-सा हैं गुलाब की शाखा का मानो
मैं ज़ख्म-ज़ख्म हूँ, फिर भी गले लगाऊँ उसे।
(-simplified version of sher by अहमद फ़राज़)
The original sher is as follows :
"वो खार-खार हैं शाखे गुलाब की मानिन्द
मैं ज़ख्म-ज़ख्म हूँ, फिर भी गले लगाऊँ उसे।
(-अहमद फ़राज़)
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17.07.2014
Love is guaranteed by your resourcefulness and not by solicitation:
"अहदे-वफ़ा है हुस्ने-यार
क़ौल नहीं, कसम नहीं।
कीमते-हुस्न दो जहाँ
कोई बड़ी रकम नहीं।"
(-'फ़िराक' गोरखपुरी)
शब्दार्थ : (1) अहदे-वफ़ा = एकमात्र प्रेम, (2) क़ौल = वचन
The poet wants to say that people are influenced by
resourcefulness of others and are ready to pay anything for
that. Any sort of promises without resources are
meaningless.
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Real love is always fresh :
हजार बार जमाना इधर से गुजरा है
हजार बार जमाना इधर से गुजरा है
नयी-नयी-सी है कुछ तेरी रहगुजर फिर भी।"
(-'फ़िराक' गोरखपुरी)
शब्दार्थ : (1) रहगुजर – रास्ता
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You are charming till you carry mystique:
"तेरी सर्वप्रियता की एकमात्र वज़ह है रहस्यमयता
"तेरी सर्वप्रियता की एकमात्र वज़ह है रहस्यमयता
कि उसको मानते ही कब हैं जिसको जान लेते हैं।"
(-simplified version of sher by फ़िराक गोरखपुरी)
The original sher is as follows :
"तेरी मक़बूलियत की वज्हे-वाहिद है तेरी रम्ज़ीयत
कि उसको मानते ही कब हैं जिसको जान लेते हैं।"
(-फ़िराक गोरखपुरी)
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Everyone can't receive :
"Saki ka sharab se bhara ghara hai
"Saki ka sharab se bhara ghara hai
Paimana hi maikash tune ulta rakha hai."
(- on 'Astha' channel)
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Pragmatism in disaster
:
"Doobte-doobte kashti ko uchhala de dun
Mai nahi koi to sahil pe utar jayega."
(-Ahmad Faraz)
"Doobte-doobte kashti ko uchhala de dun
Mai nahi koi to sahil pe utar jayega."
(-Ahmad Faraz)