Birthday of Asha Parekh - 02 Oct' 1942 |
कोई दिल में जरूर रहता है।
जब से देखा है उनकी आँखों को
हल्का-हल्का सरूर रहता है।
ऐसे रहते हैं वो मेरे दिल में
जैसे ज़ुल्मत में नूर रहता है।
अब 'अदम' का ये हाल है हर वक़्त
मस्त रहता है चूर रहता है।"
(-'अदम')
शब्दार्थ: (1) सरूर = हल्का नशा, (2) ज़ुल्मत = अँधेरा, (3) नूर = प्रकाश
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on 02.10.2013
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"सिंगारदान में रहते हो आईने की तरह
किसी के हाथ से गिरकर बिखर गए होते।
कभी तो शाम ढले अपने घर गए होते
किसी की आँख में रहकर संवर गए होते।"
(-बशीर 'बद्र')
Beauty lies in utility and not merely in it's existence. A beuty by itself has no meaning if it allows the public to like it.
Posted on https://www.facebook.com/hemant.das.585/posts/10151715218083106?notif_t=like on 28.09.2013
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"नज़र-नवाज़ नज़ारा बदल न जाए कहीं
ज़रा-सी बात है मुँह से निकल न जाए कहीं।
वो देखते हैं तो लगता है नीव हिलती है
मेरे बयान को बंदिश निगल न जाए कहीं।"
(-दुष्यंत कुमार)
मेरे बयान को बंदिश निगल न जाए कहीं।"
(-दुष्यंत कुमार)
शब्दार्थ : नज़र-नवाज़ = आँखों को आनंद देनेवाली चीज अर्थात प्रियतमा
Poet
says that in today's pseudo-democratic set-up, freedom of speech is greatly
inhibited by a System dominated by unscrupulous persons. You can't afford to
take their ire and so prefer to keep silent so that you may lead an undisturbed
life.
Posted on https://www.facebook.com/hemant.das.585 on 26.09.2013.
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